नहीं रहे आजाद भारत के पहले पीनट बटर किंग बचन सिंह नेगी, अंग्रेजों की बताई तकनीक किसी को नहीं की शेयर

मसूरी। पिटन बटर का स्वाद देश भर में लोगों तक पहुचाने वाले पिनट बटर किंग अब इस दुनिया में नहीं रहे। बता दें कि 92 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। आपको बता दें कि अंग्रेज जब देश छोड़ कर गए तो बचन सिंह नेगी को पीनट बटर की तकनीक बता गए थे जिसे आज तक बचन सिंह ने किसी से साझा नहीं की।

इनके हाथ के पीनट बटन की खूबी को इससे समझा जा सकता है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जब दून स्कूल में पढ़ते थे तो उनके पीनट बटर के दीवाने थे। बचन सिंह के निधन पर मसूरी के राजनैतिक दलों, सामाजिक संस्थाओं औऱ ट्रेडर्स एंड वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने शोक व्यक्त किया है

आपको बता दें कि सनराइज फूड प्रोडक्ट्स व पीनट बटर के संस्थापक और पीनट बटर मैन ऑफ मसूरी बचन सिंह नेगी कई दिनों से बीमार चल रहे थे। शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके बेटे ने जानकारी साझा की कि पहले ब्रिटिश काल में वह अंग्रेजों के साथ इस काम को करते थे। जब अंग्रेज गए तो वो इसे बनाने की तकनीक उनके पिता को बता गए। लेकिन उनके पिता ने कभी बड़े स्तर पर बिजनेस नहीं किया अगर वह चाहते तो एक बड़ा अंपायर खड़ा कर सकते थे। लेकिन वह खुद उसे बना कर खुद कंधे पर थैले में भरकर दुकान दुकान पीनट बटर बेचा करते थे। उनके द्वारा बनाए गए पीनट बटर के स्वाद के लोग दिवाने थे।

धीरे धीरे उन्होंने देहरादून समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आर्डर पर माल भेजा। पीनट बटर पहले केवल विदेशी या तिब्बती लोग ही प्रयोग करते थे क्यों कि अन्य को इस बारे में कुछ पता नहीं था। उनके पास कई व्यापारी भी तकनीक जानने आये लेकिन उन्होंने इसकी तकनीक किसीसे साझा नहीं की।

जानकारी मिली है कि बचन सिंह बहुत ही सरल व सीधे सादे व्यक्तित्व के धनी थे। सब से प्यार से बात करते, समान बेचते और उधार भी दे देते थे। वो पीनट बटर बेच के पैसे दे देना कहते थे। बचन सिंह के बेटे विजय नेगी ने बताया कि ब्रिटिश काल में विंसेट हिल स्कूल अंग्रेजों का था तो पिता जी उनके साथ कार्य करते थे और उन्होंने ही पीनट बटर बनाने की तकनीकि सिखायी थी 1955 में जब अंग्रेज चले गये तो उन्होंने 1972 से अपना पीनट बटर बनाने का व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने बताया कि उस समय इसके बारे में कम लोग जानते थे। लेकिन धीरे धीरे यह बाहर भी भेजा जाने लगा लेकिन केवल मांग पर ही भेजा करते थे। उन्होंने बताया कि 2005 में एक पत्रिका ने उनके पिता का इंटरव्यू लिया था व करीब डेढ पेज का लेख प्रकाशित किया

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